आंदोलन को लेकर सवाल भी उठे.आलोचकों का कहना था कि शिक्षक नेता छात्रों को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं
SSC परीक्षाओं में गड़बड़ी के खिलाफ आंदोलन, लेकिन शिक्षकों की राजनीति ने तोड़ दिया एकजुटता?
नई दिल्ली, 24 अगस्त – कर्मचारी चयन आयोग (SSC) की परीक्षाओं में कथित अनियमितताओं को लेकर हज़ारों छात्र और शिक्षक 24 अगस्त को दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि परीक्षा आयोजन में गंभीर तकनीकी खामियाँ और व्यवस्थागत गड़बड़ियाँ हैं, जिनसे लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
छात्रों की शिकायतें
आंदोलन में शामिल छात्रों ने कहा कि ऑनलाइन परीक्षा के दौरान बार-बार सिस्टम फेल होना, कंप्यूटर बंद होना, डेटा हैंग होना जैसी समस्याएँ लगातार सामने आ रही हैं। कई इनविजिलेटर अनुभवहीन होते हैं और तकनीकी दिक्कतों का हल करने की बजाय औपचारिकता निभाकर टाल देते हैं।
एक छात्र मनवीर सिंह ने बताया कि SSC Phase-13 परीक्षा में उनका कंप्यूटर तीन बार बंद हुआ और कोई संतोषजनक समाधान नहीं मिला। दूसरी ओर, बिहार से आए छात्रों ने कहा कि परीक्षा केंद्र अक्सर दूर-दराज़ राज्यों में दिए जाते हैं, जिससे ₹500–₹300 की फीस चुकाने के बावजूद यात्रा पर ₹1500–₹2000 का अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
छात्रों का आरोप है कि SSC केवल चुनावी समय पर हज़ारों पदों की भर्ती निकालता है, जबकि सामान्य समय में भर्ती की गति धीमी रहती है। इस असंगति से बेरोजगार युवाओं में निराशा गहराती है।
पुलिस लाठीचार्ज और टकराव
रामलीला मैदान में प्रदर्शन को शाम 5 बजे तक की ही अनुमति मिली थी। पुलिस ने समय पूरा होने के बाद प्रदर्शनकारियों को मैदान खाली करने को कहा। लेकिन जब छात्र हटने को तैयार नहीं हुए, तो झड़प और लाठीचार्ज की स्थिति पैदा हुई। कई छात्र और शिक्षक घायल हुए और दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया गया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग किया और यहां तक कि मंच से लोगों को नीचे फेंका गया।
शिक्षकों की भूमिका और विवाद
इस आंदोलन को लेकर शिक्षकों की भूमिका पर भी सवाल उठे। कई छात्रों का मानना था कि शिक्षकों ने आंदोलन को संगठित करने में कमी रखी। आयोजन की अनुमति सिर्फ दिनभर के लिए थी, लेकिन जब हज़ारों छात्र रात में मैदान में रुक गए तो पुलिस से टकराव हुआ और अगले दिन का परमिशन भी रद्द कर दिया गया।
एजुकेटर आदित्य रंजन ने स्वीकार किया कि अनुमति रात तक की नहीं थी, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि अचानक हज़ारों छात्रों को सड़कों पर भेजना खतरनाक हो सकता था। उनका कहना था कि छात्रों के पास टेंट, पानी और खाने की व्यवस्था थी और सुबह फिर से शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जा सकता था। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं होने दिया।
SSC पर आरोप और वेंडर विवाद
शिक्षकों और छात्रों ने SSC पर भी गंभीर आरोप लगाए। पहले SSC परीक्षाएँ TCS आयोजित करता था, जिनमें अपेक्षाकृत छोटी तकनीकी गड़बड़ियाँ होती थीं। लेकिन 2025 में Adequity नामक नई कंपनी को ठेका मिलने के बाद स्थिति और बिगड़ गई। छात्रों को दूर-दराज़ सेंटर दिए गए, एडमिट कार्ड में गड़बड़ियाँ आईं और कई जगह सर्वर फेल होने के कारण परीक्षाएँ रद्द करनी पड़ीं।
कुछ परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर थी कि छात्र मोबाइल फोन लेकर अंदर जा रहे थे। इनविजिलेटर तक लापरवाह थे—किसी के हाथ में सिगरेट तो किसी के हाथ में एडमिट कार्ड की चेकिंग। ऐसे हालात में छात्रों ने निष्पक्ष परीक्षा पर सवाल उठाए।
आंदोलन की परिणति
आंदोलन की शुरुआत में छात्र एकजुट होकर अपनी समस्याएँ उठा रहे थे, लेकिन पुलिस की सख्ती और शिक्षकों के बीच समन्वय की कमी के चलते आंदोलन बिखरता नज़र आया। छात्रों का कहना है कि उन्हें अपनी आवाज़ उठाने का मौका नहीं मिला, जबकि शिक्षकों की आंतरिक राजनीति ने आंदोलन की धार कमजोर कर दी।
निष्कर्ष
SSC अभ्यर्थियों का ग़ुस्सा लंबे समय से simmer कर रहा है। तकनीकी गड़बड़ियों, दूरदराज़ परीक्षा केंद्रों और अनियमित भर्तियों से नाराज़ छात्र सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए। लेकिन रामलीला मैदान का आंदोलन दिखाता है कि यदि नेतृत्व स्पष्ट न हो और संगठन मजबूत न हो, तो छात्रों की आवाज़ राजनीति और अव्यवस्था में दब सकती है।