सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 जुलाई) को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद संस्थापक लालू प्रसाद यादव के खिलाफ ज़मीन के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार किया। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा मुकदमे पर रोक लगाने से इनकार करने को चुनौती देने वाली यादव की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह बताए जाने पर कि याचिका केवल हाईकोर्ट के एक अंतरिम आदेश को चुनौती दे रही है। मुख्य मामला वहीं लंबित है, खंडपीठ ने कहा कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 जुलाई) को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद संस्थापक लालू प्रसाद यादव के खिलाफ ज़मीन के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार किया। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा मुकदमे पर रोक लगाने से इनकार करने को चुनौती देने वाली यादव की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह बताए जाने पर कि याचिका केवल हाईकोर्ट के एक अंतरिम आदेश को चुनौती दे रही है। मुख्य मामला वहीं लंबित है, खंडपीठ ने कहा कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी।
जस्टिस सुंदरेश ने कहा, “हम रोक नहीं लगाएंगे। हम अपील खारिज कर देंगे और कहेंगे कि मुख्य मामले का फैसला होने दीजिए। हम इस छोटे से मामले को क्यों रोके रखें?” हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने हाईकोर्ट से निचली अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान को चुनौती देने वाली यादव की याचिका पर सुनवाई में तेजी लाने का भी अनुरोध किया। इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा मुकदमे पर रोक लगाने से इनकार करने को चुनौती देने वाली उनकी याचिका का निपटारा कर दिया।
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने लालू प्रसाद यादव का प्रतिनिधित्व किया। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू सीबीआई की ओर से पेश हुए। उन्होंने यह तर्क देते हुए स्थगन की मांग की थी कि CBI ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए (लोक सेवक के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले पूर्व अनुमति) के तहत कोई पूर्व अनुमति नहीं ली थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने मुकदमे पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक ऐसा आधार है जिसे आरोप तय करते समय उठाया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू ने दलील दी कि वर्तमान मामले में धारा 17ए की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह 2018 के संशोधन (जिसमें धारा 17ए जोड़ी गई थी) से पहले हुए अपराधों से संबंधित है। जवाब में सिब्बल ने कहा, “उत्साह साफ दिख रहा है। वह 2005 से 2009 तक मंत्री थे। FIR 2021 में दर्ज की गई। बिना मंजूरी के जांच शुरू नहीं हो सकती। उनके अलावा अन्य सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए उन्होंने मंजूरी ले ली है।” हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि वह इस समय मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी। Case Title – Lalu Prasad Yadav v. Central Bureau of Investigation