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भारत-चीन-पुतिन में विश्वास की राह लंबी, अभी महज शुरुआत: पूर्व राजदूत मीरा शंकर

7 साल बाद पीएम मोदी जा सकते हैं चीन, गलवान झड़प के बाद पहला दौरा, SCO समिट में लेंगे हिस्सा

भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद और राजनयिक खींचतान के बीच एक नई पहल के संकेत मिल रहे हैं. खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में चीन की यात्रा पर जा सकते हैं.

अमेरिका में पूर्व भारतीय राजदूत का कहना है कि भारत के लिए चुनौती यह परखने की है कि चीन उसकी आकांक्षाओं को कितना स्वीकार करने को तैयार है और उन्हें वैध मानता है।
भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद और राजनयिक खींचतान के बीच एक नई पहल के संकेत मिल रहे हैं. खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में चीन की यात्रा पर जा सकते हैं. गलवान में झड़प के बाद से भारत और चीन के बीच लंबे समय से जारी तनाव के बाद अब हालात धीरे-धीरे सामान्य होते जा रहे हैं. अगर यह यात्रा होती है, तो यह दोनों देशों के बीच संबंधों में एक अहम मोड़ साबित हो सकती है. बता दें कि बीते सात साल में यह पीएम मोदी का पहला चीन दौरा हो सकता है.

तियानजिन में होगी SCO की बैठक

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की 25वीं राज्याध्यक्ष शिखर बैठक 31 अगस्त से 1 सितम्बर 2025 तक चीन के तियानजिन शहर में आयोजित होने वाली है. इसी बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है. यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब भारत और चीन के रिश्तों में धीरे-धीरे सामान्य स्थिति लौट रही है.

क्या है शंघाई सहयोग संगठन (SCO)?

साल 2001 में शंघाई में गठित यह संगठन एक क्षेत्रीय बहुपक्षीय संस्था है, जिसका उद्देश्य सुरक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना है. भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान इसके सदस्य हैं. यह संगठन वैश्विक जनसंख्या का लगभग 40% और वैश्विक GDP का 20% प्रतिनिधित्व करता है.

SCO के उद्देश्य

SCO का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच विश्वास, स्थिरता और सहयोग को मजबूत करना है. यह संगठन आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के खिलाफ संयुक्त रणनीति अपनाने पर बल देता है. साथ ही, व्यापार, निवेश और ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में साझेदारी को भी बढ़ावा देना इसके एजेंडे में शामिल है.

पिछली मुलाकात और मौजूदा संदर्भ

  • पिछले साल अक्टूबर में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ब्रिक्स सम्मेलन (कजान) में हुई थी. उस बातचीत के बाद सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए थे. अब जब वैश्विक मंच पर व्यापार और भू-राजनीति दोनों में बदलाव हो रहे हैं, ऐसे में मोदी-जिनपिंग की अगली संभावित मुलाकात पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें टिकी होंगी.

SCO Summit: ज‍िनपिंग ही नहीं, इस जनरल से भी मिले पीएम मोदी, जानें क्‍यों जरूरी ये मुलाकात?

SCO समिट में तिआनजिन में पीएम नरेंद्र मोदी और जनरल मिन आंग ह्लाइंग की बैठक ने भारत-म्यांमार सुरक्षा, व्यापार और एक्ट ईस्ट पॉलिसी को नई दिशा दी है.
तिआनजिन में चल रहे शंघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन (SCO) समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार के कार्यकारी राष्ट्रपति और सैन्य प्रमुख जनरल मिन आंग ह्लाइंग से द्विपक्षीय बैठक की. रविवार को हुई यह मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि यह केवल भारत-म्यांमार रिश्तों की मजबूती का संकेत नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की दिशा में भी अहम कदम है. विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया क‍ि दोनों नेताओं ने भारत-म्यांमार संबंधों की समीक्षा की और द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की. इसमें व्यापार, विकास साझेदारी, रक्षा और सुरक्षा सहयोग तथा सीमा प्रबंधन जैसे मुद्दे शामिल रहे. पीएम मोदी ने म्यांमार की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में भारत की प्रतिबद्धता दोहराई और पड़ोसी देश के साथ साझेदारी मजबूत करने की इच्छा जताई. 

भारत और म्यांमार की लगभग 1,600 किलोमीटर लंबी सीमा है जो पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील मानी जाती है. इस इलाके में अक्सर उग्रवादी गतिविधियों और सीमा-पार अपराधों की चुनौती रहती है. बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने सीमा प्रबंधन, व्यापार, कनेक्टिविटी और सुरक्षा सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की. पीएम मोदी ने खास तौर पर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई कि म्यांमार के साथ सीमा पार बुनियादी ढांचे और ऊर्जा संबंधों को और मजबूत किया जाएगा. म्यांमार भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का अहम हिस्सा है और उसे लैंड ब्रिज कहा जाता है जो भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से सीधे जोड़ता है.
म्यांमार में बदलाव की बयार
यह मुलाकात उस समय हुई है जब म्यांमार 2021 की सैन्य सत्ता परिवर्तन के बाद अब भी अस्थिरता झेल रहा है. वहां की राजनीति लगातार संकट में है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी म्यांमार की सैन्य सरकार पर सवाल उठाए हैं. इसके बावजूद भारत ने इंगेजमेंट की नीति अपनाई है और हमेशा यही कहा है कि म्यांमार की स्थिरता भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. भारत के लिए यह संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एक ओर उसे लोकतंत्र समर्थक रुख से पीछे नहीं हटना, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा और कनेक्टिविटी के लिए म्यांमार से रिश्ते बनाए रखना जरूरी है.
भारत के ल‍िए 2 मोर्चों पर मददगार
बैठक में जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने कृषि, ऊर्जा और पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई. दोनों पक्षों ने सीमा-पार अपराध और उग्रवाद को रोकने के लिए तंत्र मजबूत करने पर भी चर्चा की. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बातचीत भारत को दो मोर्चों पर मदद करेगी. 

पूर्वोत्तर की सुरक्षा: सीमा-पार आतंकी गतिविधियों और अवैध व्यापार पर रोक लगेगी.
आर्थिक सहयोग: ऊर्जा और कनेक्टिविटी परियोजनाओं में निवेश बढ़ेगा, जिससे भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच व्यापार आसान होगा. 

क्षेत्रीय संतुलन और भारत की रणनीति
यह मुलाकात भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं को भी दर्शाती है. एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देशों ने म्यांमार की सैन्य सरकार से दूरी बना ली है, वहीं भारत ने व्यावहारिक रुख़ अपनाया है. भारत का मानना है कि म्यांमार की स्थिरता केवल वहां के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए जरूरी है. इसके अलावा, चीन का म्यांमार में बढ़ता प्रभाव भी भारत के लिए चिंता का विषय है. भारत नहीं चाहता कि म्यांमार पूरी तरह बीजिंग के खेमे में चला जाए. यही कारण है कि मोदी और मिन आंग ह्लाइंग की यह मुलाकात रणनीतिक दृष्टि से भी अहम है.
अर्थव्यवस्था और रणनीतिक साझेदारी मीरा शंकर ने कहा कि चीन ने महत्वपूर्ण खनिजों और रेअर अर्थ मिनरल्स के निर्यात को सीमित किया, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा, ईवी और अन्य क्षेत्रों को असर पड़ा। इसलिए, आर्थिक साझेदारी और तकनीकी हस्तांतरण की चर्चा आवश्यक है। दुनिया में बहुपक्षवाद संकट में है और भारत तथा चीन को साथ मिलकर वैश्विक अस्थिरता को चुनौती देना चाहिए। कैबिनेट से बैठकों की मजबूरी मीरा शंकर ने यह भी बताया कि साक्षात्कार के पीछे कान्फ्रेंस में भाषा अनुवाद और औपचारिक अनुवाद की प्रक्रिया बातचीत को धीमा और संरचित बनाती है। पहले से तय प्रक्रिया और मार्गदर्शिका (स्क्रिप्ट) संवाद को नियंत्रित करती है। दोनों देश व्यापक तैयारियों के साथ आगे बढ़ते हैं, जैसे वीजा नीति में सुलह, कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः प्रारंभ, सीमा व्यापार का पुनरारंभ और सीमा पर शुरुआती समझौते व संवाद समिति की स्थापना इत्यादि। सीमा पर सैनिक स्थिरीकरण, विश्वास बहाली और मौजूदा यंत्रणा को फिर से सक्रिय करना प्रमुख विषय बने हुए हैं। Advertisement हर देश की प्राथमिकता भारत चाहता है कि चीन भारत से अधिक खरीदारी करे और महत्वपूर्ण तकनीकी साझेदारी करे, क्योंकि चीन के साथ व्यापार असंतुलित है (सौ बिलियन डॉलर+ का व्यापार घाटा)। चीन शायद कोविड‑19 अवधि में लागू देशों पर FDI प्रतिबंधों को कुछ सरल बनाने की उम्मीद रखता है। रणनीतिक विराम? मीरा शंकर का कहना है कि यह एक ‘थाव’ (मुलायम संपर्क) हो सकता है, लेकिन यह धीरे-धीरे निर्मित करना होगा। दोबारा विश्वास स्थापित करने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है — विशेषकर लद्दाख जैसी सीमा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के मद्देनजर। चीन अमेरिका के टैरिफ के दबाव में कई देशों से संपर्क कर रहा है और भारत इसे एक संकेत के रूप में देख सकता है। भारत‑अमेरिका संबंध मजबूत रहे हैं, लेकिन वर्तमान तनाव भारत को वैकल्पिक साझेदारों की ओर खींच रहा है। भारत को जापान, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, इंडोनेशिया जैसे मध्य पावर देशों के साथ गहरे संबंध भी बढ़ाने हैं, साथ ही अमेरिका को भी संरक्षित रखना है — स्वतंत्र निर्णय क्षमता बनाए रखते हुए। वास्तविक अपेक्षाएं और आशाओं का संतुलन मीरा शंकर ने कहा कि इस मुलाकात से बड़े समझौते की अपेक्षा करना मुनासिब नहीं है। बल्कि NSA स्तर पर पहले से तय कुछ गतिविधियां — जैसे सीमित सैनिक हटाव, विश्वास निर्माण उपाय और बहुपक्षीय सहयोग पर कार्य नियमबद्ध रूप से घोषित हो सकते हैं।
SCO सम्मेलन में मोदी और पुतिन की यह गर्मजोशी से भरी मुलाकात अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच एक अहम रणनीतिक संकेत मानी जा रही है. यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और बहुपक्षीय कूटनीति की दिशा में एक और मजबूत कदम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शनिवार को चीन के तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के इतर मुलाकात की. इस दौरान दोनों ने एक-दूसरे को गर्मजोशी से गले लगाया. यह मुलाकात उस समय हुई है, जब अमेरिका ने भारत के खिलाफ भारी-भरकम टैरिफ लगाए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पुतिन के साथ अपनी दो तस्वीरें साझा कीं — एक में दोनों नेता बातचीत कर रहे हैं और दूसरी में एक-दूसरे को गले लगा रहे हैं. मोदी ने लिखा कि हमेशा खुशी होती है राष्ट्रपति पुतिन से मिलकर!

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