अदालतों के आदेशों के तहत झुग्गी बस्तियाँ गिराई जा रही हैं और बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ अचानक काट दी जा रही हैं.
दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज में जय हिंद कैंप से लेकर उत्तरी दिल्ली की वज़ीरपुर बस्ती तक, शहरी विस्थापन की एक दर्दनाक तस्वीर उभर रही है.
यह स्थिति न केवल प्रभावित परिवारों के लिए संघर्ष खड़ा कर रही है, बल्कि दिल्ली के शहरी विकास को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है.
जय हिंद कैंप: बिना बिजली के जीवन बना संघर्ष
वसंत कुंज के समृद्ध रिहायशी इलाक़ों के ठीक बगल में बसा है जय हिंद कैंप.
कैंप की ओर जाने वाला रास्ता कूड़े और कबाड़ के ढेर से भरा है. यहां कुछ क़दम चलते ही अजीब-सी बदबू असहज कर देती है.
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं, और झुग्गियों के बाहर पसीने में तर-बतर महिलाएँ हाथ से पंखा हिलाकर भीषण गर्मी से कुछ राहत पाने की कोशिश कर रही हैं.
हर तरफ से बच्चों के रोने की आवाज़ें आ रही हैं. हाल की बारिश ने कच्ची गलियों को कीचड़ से भर दिया है, जिससे चलना मुश्किल हो गया है.
जय हिंद कैंप में एक हज़ार से अधिक कच्ची झुग्गियाँ हैं, जहाँ ज़्यादातर पश्चिम बंगाल के कूच बिहार ज़िले से आए मुस्लिम प्रवासी परिवार रहते हैं. कुछ हिंदू परिवार भी हैं.
पिछले साल दिसंबर में आए एक अदालती आदेश के बाद, बीते सप्ताह इस बस्ती की बिजली अचानक काट दी गई.
यह मामला मसूदपुर गाँव की ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर चल रहे विवाद से जुड़ा है, जिसमें कई लोगों ने ज़मीन पर अपना दावा पेश किया है.
बस्ती में एक ओर मंदिर है, और बीच में एक मस्जिद. इन दोनों के बिजली कनेक्शनों से ही कैंप की सभी झुग्गियों में बिजली की आपूर्ति होती थी, क्योंकि यहाँ रहने वालों के पास अपने निजी बिजली कनेक्शन नहीं हैं.
