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जनहित के साथ संतुलन आवश्यक: दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे में लो विजन और नेत्रहीन अभ्यर्थियों के लिए पदों के विभाजन को उचित ठहराया

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में रेलवे द्वारा दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों को दो श्रेणियों में विभाजित करने की कार्रवाई को सही करार दिया। एक श्रेणी में ऐसे पद शामिल हैं, जिन्हें लो विजन (एलवी) और नेत्रहीन दोनों उम्मीदवारों द्वारा संभाला जा सकता था, जबकि दूसरी श्रेणी में केवल एलवी उम्मीदवारों के लिए पद निर्धारित किए गए। जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिग्पौल की खंडपीठ ने यह कहते हुए याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज कर दिया कि नेत्रहीन और एलवी उम्मीदवार एक ही श्रेणी में आते हैं और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPWD Act) के तहत आरक्षित रिक्तियों का इस तरह उपविभाजन नहीं किया जा सकता। Also Read – केवल केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए जारी OBC प्रमाणपत्र दिल्ली सरकार की नौकरियों में आरक्षण के लिए मान्य नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट ने कहा, “धारा 34 के तहत आरक्षण रिक्तियों का होता है; जबकि धारा 33 के तहत पदों की पहचान की जाती है। आरक्षित रिक्तियों में से उपयुक्त सरकार द्वारा पद-वार यह पहचान की जा सकती है कि कौन-सा पद किस प्रकार की शारीरिक दिव्यांगता वाले व्यक्ति के लिए उपयुक्त है। यह कानूनन अनुमेय है।” कोर्ट ने यह भी कहा, “आरक्षण केवल नियुक्ति का अधिकार नहीं देता। पद-वार पहचान के बाद ही उपयुक्त पद उपलब्ध होने पर आरक्षित उम्मीदवार को उस पद पर नियुक्ति पर विचार का अधिकार मिलता है।” Also Read – दिल्ली हाईकोर्ट ने जब्त सामान की अस्थायी रिहाई के लिए कस्टम द्वारा मांगी गई ₹10 करोड़ की सुरक्षा राशि को रद्द किया मामले में याचिकाकर्ता 100% नेत्रहीन थे और रेलवे में कुछ पदों को केवल एलवी के लिए सीमित किए जाने से आहत थे। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) से याचिका खारिज होने के बाद वे हाईकोर्ट पहुंचे थे। कोर्ट ने कहा कि जिन पदों के लिए याचिकाकर्ता आवेदन कर रहे हैं, वे डेस्क जॉब नहीं हैं, बल्कि इनमें मशीनरी संचालन और ऐसी गतिविधियां शामिल हैं, जो पूरी तरह नेत्रहीन व्यक्ति के लिए संभव नहीं। कोर्ट ने टिप्पणी की, “विकलांग व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने का हमारा संवैधानिक कर्तव्य है, लेकिन हमें जनहित का भी ध्यान रखना होगा। रेलवे जैसे विभाग में ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति जो पद संभालने में सक्षम नहीं हो, जनता की जान-माल के लिए खतरा बन सकती है।” अंततः कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दीं और कहा कि सरकार को आरक्षित रिक्तियों में से उपयुक्त पदों की पहचान करने का अधिकार है। केस टाइटल: नंदलाल लुहार व अन्य बनाम वेस्टर्न रेलवे व अन्य (बैच मामले)

 

 

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