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कफ सिरप 2-साल से कम के बच्चों को सिरप ना पिलाएं’, ‘जानलेवा कफ सिरप’ पर सरकार की एडवाइजरी, जांच में क्लीन चिट

कफ सिरप से बच्चों की कथित मौत का मामला मध्य प्रदेश और राजस्थान से सामने आया था. जिसकी जांच रिपोर्ट सामने आ गई है. जांच में कफ सिरप में कुछ भी गलत नहीं मिला है.

 

  • मध्यप्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप के सेवन से 12 बच्चों की मौत की खबर बीते दिनों सामने आई है.
  • जिसके बाद कफ सिरप को जांच के लिए दिल्ली, पुणे तक भेजा गया. लेकिन इस कफ सिरप सैंपल में कुछ संदिग्ध नहीं मिला.
  • राजस्थान के चिकित्सा मंत्री ने कहा कि दवाएं सरकारी प्रिस्क्रिप्शन पर नहीं दी गईं और उनकी गुणवत्ता सही मिली.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिरप के उपयोग के लिए जारी की एडवाइजरी 

  • डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विस डॉक्टर सुनीता शर्मा ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी की एडवाइजरी.
  • बच्चों में होने वाली ज्यादातर खांसी की समस्या अपने आप ठीक हो जाती है और इसके लिए दवा की जरूरत नहीं पड़ती.
  • 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी या जुकाम की सिरप बिल्कुल न दें.
  • 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी इन दवाओं का उपयोग आम तौर पर ना करें.
  • 5 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों में सिरप तभी दें जब डॉक्टर सलाह दे.
  • सही मात्रा और कम से कम दिनों के लिए दवा दी जाए और एक साथ कई दवाओं का उपयोग न किया जाए.
  • आम जनता को भी बताया जाए कि वे डॉक्टर की सलाह के बिना बच्चों को कोई सिरप न दें.
  • डॉक्टर सिरप देने की बजाय सबसे पहले बिना दवा के राहत के उपाय के बारे में बच्चों को बताये.
  • बच्चों को पर्याप्त पानी और तरल पदार्थ, आराम करने की सलाह और घरेलू और सहयोगी उपायों जैसे भाप लेना, गुनगुना पानी पीने की सलाह दें.
  • DGHS ने स्वास्थ्य संस्थानों को निर्देश दिया की.
  • सभी सरकारी और निजी स्वास्थ्य संस्थान यह सुनिश्चित करें कि अच्छी गुणवत्ता  वाली कंपनियों से ही दवाएं खरीदी जाएं.
  • दवाओं में केवल फार्मास्यूटिकल ग्रेड सामग्री का उपयोग हो.
  • डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को सही परामर्श और दवा देने के नियमों के प्रति जागरूक किया जाए.
  • इन निर्देशों को केंद्र से लेकर जिले स्तर के अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और मेडिकल कॉलेज में पालन किया जाए.

 

क्या कभी कोई दवा के नाम पर जहर बांटेगा? यकीन नहीं होता, पर दुर्भाग्य से ये सच है। मध्य प्रदेश और राजस्थान, इन दो राज्यों में खांसी की दवा के नाम पर खुलेआम जहर बांटा जा रहा है और बच्चे दवा के नाम पर जहर खा लेने से तड़पकर दम तोड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश में १४ बच्चों की ‘कफ सिरप’ यानी खांसी की दवा खाने से मौत हो गई। राजस्थान में भी तीन छोटे बच्चे खांसी की दवा खाकर हमेशा के लिए सो गए! इन दोनों राज्यों से आ रही बच्चों की मौत की खबरों ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है। माता-पिता अपने बच्चों का इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल से दवा दिलाएं और फिर कुछ ही घंटों में बच्चों के गुर्दे फेल हो जाएं और उनकी मौत हो जाए, यह भयानक और क्रोध पैदा करनेवाला है। इस तरह दवा शब्द पर से भरोसा उठ जाता है। कुछ बच्चे दो साल के हैं तो कुछ तीन से पांच साल के। क्या भरोसे के साथ अपने बीमार बच्चों को सरकारी अस्पताल से दवा दिलाना, माता-पिता की गलती है? बच्चों के माता-पिता और परिवार का अपनी आंखों के सामने उन बच्चों की आंखें हमेशा के लिए बंद होते हुए देखना और फिर उनकी दिल दहला देने वाली चीख परेशान करनेवाली है, लेकिन क्या
मौत के इस तांडव से
सरकार और प्रशासन के लोग और दवा बनानेवाली कंपनी, जो इस दवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थे, के चेहरे पर कोई शिकन भी आई होगी? पैसों का लालच ही इन मौतों की एकमात्र वजह है और इसलिए जहरीली खांसी की दवा में सस्ती और घटिया रसायन मिलाकर इसे बनाया गया था। जिन परिवारों के बच्चों ने इसे पीकर दम तोड़ा, उनकी पीड़ा अकल्पनीय है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में इस जहरीली खांसी की दवा से कुल १४ बच्चों की मौत हो गई, जबकि राजस्थान के भरतपुर और सीकर में सरकारी अस्पताल द्वारा दी गई खांसी की दवा से तीन बच्चों की मौत हो गई। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त में मिलनेवाली इस दवा को लेने के बाद कई बच्चे अभी भी विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। इनमें से कुछ बच्चे वेंटिलेटर पर हैं। इतनी बड़ी संख्या में घटिया और मिलावटी दवा से बच्चों की मौत के बाद अब जाकर कहीं सरकारी तंत्र की नींद टूटी है। सरकार ने अब इस्तेमाल हो चुकी दवाओं को प्रयोगशाला में भेजकर उनकी जांच कराने, सरकारी अस्पतालों में भेजी गई दवाओं का स्टॉक वापस मंगवाकर उन्हें नष्ट कराने जैसे उपाय शुरू किए हैं। जो काम पहले हो जाना चाहिए था, जो जांच पहले हो जानी चाहिए थी, दवाओं का जो गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण पहले हो जाना चाहिए था, उसे अब करने का क्या फायदा? खांसी की दो दवाओं, कोल्ड्रीफ और नेक्सा डीएस पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है और आदेश जारी किया गया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी की दवा न दी जाए। लेकिन जिन १७ बच्चों की जान गई, उनकी जिम्मेदारी कौन लेगा? कोल्ड्रीफ नामक दवा
ने सबसे ज्यादा जानें
ली हैं। यह दवा तमिलनाडु की श्रीसन फॉर्मास्युटिकल्स नामक कंपनी बनाती है। यह दवा देशभर के कई राज्यों में सप्लाई की जाती है। चौंकानेवाली बात यह है कि इस दवा में ऑटोमोबाइल उद्योग में इस्तेमाल होने वाले खतरनाक और जहरीले रसायन, डायथिलीन ग्लाइकॉल की भारी मिलावट की गई थी। जहां इस रसायन की मात्रा दवा में केवल ०.१ प्रतिशत होने की उम्मीद थी, वहीं इस दवा की जांच में इसकी मात्रा ४६ से ४८ प्रतिशत पाई गई। दवा की गुणवत्ता बनाए रखने के बजाय, कार के कूलेंट और ब्रेक में इस्तेमाल होने वाले सस्ते और खतरनाक रसायनों को इसमें भारी मात्रा में मिलाया गया। कंपनियों ने दवा की उत्पादन लागत कम करने के लिए यह पाप किया और जांच करने वाली सभी संस्थाओं ने अपने छोटे-मोटे मुनाफे या लालच के लिए जहर की मिलावट को आसानी से नजरअंदाज कर दिया। कहावत है कि ‘बीमारी से खतरनाक इलाज ‘। मध्य प्रदेश और राजस्थान में ठीक यही हुआ। खांसी जैसी आम बीमारी के लिए सरकारी अस्पतालों से ली जानेवाली मुफ्त दवा से लगभग १७ बच्चों की मौत हो गई। दवा उत्पादन की लागत कम करने के लिए ‘कफ सिरप’ में सस्ते और जहरीले रसायन मिलाए जाने से यह त्रासदी हुई। खांसी की दवा के नाम पर जहर की बोतलें बांटी जा रही थीं। बच्चों की मौतों का यह तांडव सरकार द्वारा विषप्रयोग के कारण हुआ। ‘सुशासन’ का ढिंढोरा पीटनेवाले हुक्मरानों के खिलाफ इस विषप्रयोग के लिए गैर इरादतन हत्या का गुनाह दायर किया जाना चाहिए!

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